आई है तिरे इश्क़ की बाज़ी दिल-ओ-जाँ पर
इस वक़्त नज़र कब है मुझे सूद-ओ-ज़ियाँ पर
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भरा कमाल-ए-वफ़ा सें ख़याल का शीशा
अश्क-ए-ख़ूनीं है शफ़क़ आज मिरी आँखों में
जिस कूँ तुझ ग़म सीं दिल-शिगाफ़ी है
पीव के आने का वक़्त आया है
देखा है जिस ने यार के रुख़्सार की तरफ़
मेरे जिगर के दर्द का चारा कब आएगा
ख़बर-ए-तहय्युर-ए-इश्क़ सुन न जुनूँ रहा न परी रही
वहशत को मिरी देख कि मजनूँ ने कहा बस
अदा-ए-दिल-फ़रेब-ए-सर्व-क़ामत
दो-रंगी ख़ूब नईं यक-रंग हो जा
ग़म ने बाँधा है मिरे जी पे खला हाए खला
मख़मूर चश्मों की तबरीद करने कूँ शबनम है सरदाब शोरों की मानिंद