जिस कूँ तुझ ग़म सीं दिल-शिगाफ़ी है
मरहम-ए-वस्ल इस कूँ शाफ़ी है
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तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन
ऐ अक़्ल निकल जा कि धुआँ आह का नहीं है
मत करो शम्अ को बदनाम जलाती वो नहीं
अग़्यार छोड़ मुझ सें अगर यार होवेगा
जब सीं लाया इश्क़ ने फ़ौज-ए-जुनूँ
सनम हज़ार हुआ तो वही सनम का सनम
अगर कुछ होश हम रखते तो मस्ताने हुए होते
दिल मिरा साग़र-ए-शिकायत है
अमल सें मय-परस्तों के तुझे क्या काम ऐ वाइ'ज़
क़द तिरा सर्व-ए-रवाँ था मुझे मालूम न था
देखा है जिस ने यार के रुख़्सार की तरफ़