जिस कूँ पिव के हिज्र का बैराग है
आह का मज्लिस में उस की राग है
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मस्जिद वहशत में पढ़ता है तरावीह-ए-जुनूँ
मज्लिस-ए-ऐश गर्म हो या-रब
ज़ालिम मिरे जिगर कूँ करे क्यूँ न फाँक फाँक
तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन
वो ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन लगती नहीं हात
सीमाब जल गया तो उसे गर्द बोलिए
मिरे सीं दूर क्या चाहते हैं साया-ए-इश्क़
बुत-परस्तों कूँ है ईमान-ए-हक़ीक़ी वस्ल-ए-बुत
बात कर दिल सती हिजाब निकाल
ग़म की जब सोज़िश सीं महरम होवेगा
जिस दिन सीं मैं यार बूझता हूँ