मिरे सीं दूर क्या चाहते हैं साया-ए-इश्क़
जिते हैं शहर के सियाने हुए हैं दीवाने
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इश्क़ में अव्वल फ़ना दरकार है
ऐ सनम तुझ बिरह में रोता हूँ
कान में है तेरे मोती आब-दार
यक निगह सें लिया है वो गुलफ़ाम
इश्क़ दोनों तरफ़ सूँ होता है
कभी जो आह के मिसरे कूँ याद करता हूँ
दिल में आ राह-ए-चश्म-ए-हैराँ सीं
जिस ने तुझ हुस्न पर निगाह किया
जब सीं देखा हूँ यार की सूरत
ऐ दिल-ए-बे-अदब उस यार की सौगंद न खा
जब सें तुझ इश्क़ की गरमी का असर है मन में
है जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ में तिरी तीर की आवाज़