बुत-परस्तों कूँ है ईमान-ए-हक़ीक़ी वस्ल-ए-बुत
बर्ग-ए-गुल है बुलबुलों कूँ जल्द-ए-क़ुरआन-ए-मजीद
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कचेहरी में चमन की हर तरफ़ फ़रियाद बुलबुल है
जीना तड़प तड़प कर मरना सिसक सिसक कर
मिरे सीं दूर क्या चाहते हैं साया-ए-इश्क़
फ़स्ल-ए-गुल का ग़म दिल-ए-नाशाद पर बाक़ी रहा
तिरे सुख़न में ऐ नासेह नहीं है कैफ़िय्यत
यार जब पेश-ए-नज़र होता है
ज़ालिम मिरे जिगर कूँ करे क्यूँ न फाँक फाँक
पी कर शराब-ए-शौक़ कूँ बेहोश हो बेहोश हो
मज्लिस-ए-ऐश गर्म हो या-रब
तहक़ीक़ की नज़र सीं आख़िर कूँ हम ने देखा
मेरे जिगर के दर्द का चारा कब आएगा