तहक़ीक़ की नज़र सीं आख़िर कूँ हम ने देखा
अक्सर हैं माल वाले कम हैं कमाल वाले
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तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन
रोज़ा-दारान-ए-जुदाई कूँ ख़म-ए-अबरू-ए-यार
दो-रंगी ख़ूब नहीं यक-रंग हो जा
क्या पूछते हो तुम कि तिरा दिल किधर गया
जिस दिन सीं मैं यार बूझता हूँ
हमारी बात मोहब्बत सीं तुम जो गोश करो
अमल सें मय-परस्तों के तुझे क्या काम ऐ वाइ'ज़
सर्व-ए-गुलशन पर सुख़न उस क़द का बाला हो गया
सीना-साफ़ी की है जिसे ऐनक
जाँ-सिपारी दाग़ कत्था चूना है चश्म-ए-इन्तिज़ार
हवस की आँख सीं वो चेहरा-ए-रौशन न देखोगे
मुझ रंग ज़र्द ऊपर ग़ुस्से सीं लाल मत हो