दो-रंगी ख़ूब नहीं यक-रंग हो जा
सरापा मोम हो या संग हो जा
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Gulzar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Rahat Indori
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(577) Peoples Rate This
तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन
नज़र-ए-तग़ाफ़ुल-ए-यार का गिला किस ज़बाँ सीं करूँ बयाँ
इश्क़ ने ख़ूँ किया है दिल जिस का
मस्जिद अबरू में तेरी मर्दुमुक है जिऊँ इमाम
था बहाना मुझे ज़ंजीर के हिल जाने का
सीना-साफ़ी की है जिसे ऐनक
पी कर शराब-ए-शौक़ कूँ बेहोश हो बेहोश हो
जिस कूँ पियो के हिज्र का बैराग है
बगूला जिन के सर पर चत्र-ए-शाही है ज़मीं मसनद
डूब जाता है मिरा जी जो कहूँ क़िस्सा-ए-दर्द
मुझ सीं ग़म दस्त-ओ-गरेबाँ न हुआ था सो हुआ