बगूला जिन के सर पर चत्र-ए-शाही है ज़मीं मसनद
वही अक़्लीम-ए-ग़म में आह की नौबत बजाते हैं
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इस अदब-गाह कूँ तूँ मस्जिद-ए-जामे मत बूझ
डोरे नहीं हैं सुर्ख़ तिरी चश्म-ए-मस्त में
अबस इन शहरियों में वक़्त अपना हम किए ज़ाए
हिज्र की रातों में लाज़िम है बयान-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार
अग़्यार छोड़ मुझ सें अगर यार होवेगा
जान ओ दिल सीं मैं गिरफ़्तार हूँ किन का उन का
सर्व-ए-गुलशन पर सुख़न उस क़द का बाला हो गया
बुत-परस्तों कूँ है ईमान-ए-हक़ीक़ी वस्ल-ए-बुत
नक़्द-ए-दिल-ए-ख़ालिस कूँ मिरी क़ल्ब तूँ मत जान
क्या बला सेहर हैं सजन के नयन
पकड़ा हूँ किनारा-ए-जुदाई
जो तुझे देख के मबहूत हुआ