ऐ शोख़ गुलिस्ताँ मैं नहीं ये गुल-ए-रंगीं
आया दिल-ए-सद-चाक मिरा रंग बदल कर
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ग़म-ए-आहिस्ता-रौ याँ रफ़्ता रफ़्ता
मिरे सीं दूर क्या चाहते हैं साया-ए-इश्क़
कहते हैं तिरी ज़ुल्फ़ कूँ देख अहल-ए-शरीअत
तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन
सुनो तो ख़ूब है टुक कान धर मेरा सुख़न प्यारे
क्या बला का है नशा इश्क़ के पैमाने में
यार को बे-हिजाब देखा हूँ
नहीं बख़्शी है कैफ़िय्यत नसीहत ख़ुश्क ज़ाहिद की
कभी तुम मोल लेने हम कूँ हँस हँस भाव करते हो
ज़िंदगानी दर्द-ए-सर है यार बिन
सुना है जब सीं तेरे हुस्न का शोर
नज़र-ए-तग़ाफ़ुल-ए-यार का गिला किस ज़बाँ सीं करूँ बयाँ