नहीं बख़्शी है कैफ़िय्यत नसीहत ख़ुश्क ज़ाहिद की
जला देव आतिश-ए-सहबा सीं इस कड़बी के पोले कूँ
Allama Iqbal
Habib Jalib
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Gulzar
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(505) Peoples Rate This
काफ़िर हुआ हूँ रिश्ता-ए-ज़ुन्नार की क़सम
हमारी आँखों की पुतलियों में तिरा मुबारक मक़ाम हैगा
मैं कहा क्या अरक़ है तुझ रुख़ पर
वक़्त है अब नमाज़-ए-मग़रिब का
मकतब में मिरे जुनूँ के मजनूँ
तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन
ग़म की जब सोज़िश सीं महरम होवेगा
मुस्तइद हूँ तिरे ज़ुल्फ़ों की सियाही ले कर
हर हर वरक़ पे क्यूँ कि लिखूँ दास्तान-ए-हिज्र
बोलता हूँ जो वो बुलाता है
नियाज़-ए-बे-ख़ुदी बेहतर नमाज़-ए-ख़ुद-नुमाई सीं
तुझ पर फ़िदा हैं सारे हुस्न-ओ-जमाल वाले