हिज्र की रातों में लाज़िम है बयान-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार
नींद तो जाती रही है क़िस्सा-ख़्वानी कीजिए
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हम हैं मुश्ताक़-ए-जवाब और तुम हो उल्फ़त सीं बईद
कभी तुम मोम हो जाते हो जब मैं गर्म होता हूँ
कभी तुम मोल लेने हम कूँ हँस हँस भाव करते हो
नियाज़-ए-बे-ख़ुदी बेहतर नमाज़-ए-ख़ुद-नुमाई सीं
जिस कूँ पिव के हिज्र का बैराग है
अग़्यार छोड़ मुझ सें अगर यार होवेगा
कभी जो आह के मिसरे कूँ याद करता हूँ
तुझ पर फ़िदा हैं सारे हुस्न-ओ-जमाल वाले
ऐ दोस्त तलत्तुफ़ सीं मिरे हाल कूँ आ देख
तिरे सलाम के धज देख कर मिरे दिल ने
है जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ में तिरी तीर की आवाज़
जब सीं देखा हूँ यार की सूरत