तिरे सलाम के धज देख कर मिरे दिल ने
शिताब आक़ा मुझे रुख़्सती सलाम किया
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मैं हूँ तो दिवाना प किसी ज़ुल्फ़ का नहीं हूँ
हुआ हूँ इन दिनों माइल किसी का
फ़स्ल-ए-गुल का ग़म दिल-ए-नाशाद पर बाक़ी रहा
मकतब-ए-इश्क़ का मोअल्लिम हूँ
कहाँ है गुल-बदन मोहन पियारा
ऐ अक़्ल निकल जा कि धुआँ आह का नहीं है
किया ख़ाक आतिश-ए-इश्क़ ने दिल-ए-बे-नवा-ए-'सिराज' कूँ
सनम हज़ार हुआ तो वही सनम का सनम
शह-ए-बे-ख़ुदी ने अता किया मुझे अब लिबास-ए-बरहनगी
किया है जब सीं अमल बे-ख़ुदी के हाकिम ने
मिरा दिल आ गया झट-पट झपट में
दिन-ब-दिन अब लुत्फ़ तेरा हम पे कम होने लगा