किया है जब सीं अमल बे-ख़ुदी के हाकिम ने
ख़िरद-नगर की रईयत हुई है रू ब-गुरेज़
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हमारा दिलबर-ए-गुलफ़म आया
तुझ ज़ुल्फ़ की शिकन है मानिंद-ए-दाम गोया
तहक़ीक़ की नज़र सीं आख़िर कूँ हम ने देखा
जलव-ए-जाँ-फ़ज़ा दिखाता रह
अदा-ए-दिल-फ़रेब-ए-सर्व-क़ामत
शर्बत-ए-वस्ल पिला जा लब-ए-शीरीं की क़सम
नज़र आता नहीं मुझ कूँ सबब क्या
सनम जब चीरा-ए-ज़र-तार बाँधे
वो ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन लगती नहीं हात
तिरी निगाह-ए-तलत्तुफ़ ने फ़ैज़ आम किया
मुश्ताक़ हूँ तुझ लब की फ़साहत का व-लेकिन