खुल गए उस की ज़ुल्फ़ के देखे
पेच-ए-दस्तार-ए-ज़ाहिद-ए-मक्कार
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तिरी अबरू है मेहराब-ए-मोहब्बत
शोर है बस-कि तुझ मलाहत का
दिल ले गया है मुझ कूँ दे उम्मीद-ए-दिल-दही
दिल में जब आ के इश्क़ ने तेरे महल किया
क्यूँकि होवे ज़ाहिद ख़ुद-बीं मुरीद-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार
ऐ नसीम-ए-सहरी बू-ए-मोहब्बत ले आ
मैं कहा क्या अरक़ है तुझ रुख़ पर
न मिले जब तलक विसाल उस का
यक निगह सें लिया है वो गुलफ़ाम
सनम किस बंद सीं पहुँचूँ तिरे पास
अपना जमाल मुझ कूँ दिखाया रसूल आज
सुने रातों कूँ गर जंगल में मेरे ग़म की वावैला