क्यूँकि होवे ज़ाहिद ख़ुद-बीं मुरीद-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार
उस ने सारी उम्र में ज़ुन्नार कूँ देखा न था
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तुझ ज़ुल्फ़ में दिल ने गुम किया राह
ज़िंदगानी दर्द-ए-सर है यार बिन
जिस ने तुझ हुस्न पर निगाह किया
क्या बला सेहर हैं सजन के नयन
फ़जर उठ यार का दीदार करनाँ
ख़ाक हूँ ए'तिबार की सौगंद
तुझे कहता हूँ ऐ दिल इश्क़ का इज़हार मत कीजो
नियाज़-ए-बे-ख़ुदी बेहतर नमाज़-ए-ख़ुद-नुमाई सीं
मख़मूर चश्मों की तबरीद करने कूँ शबनम है सरदाब शोरों की मानिंद
दिल-ए-नादाँ मिरा है बे-तक़सीर
हमारा दिलबर-ए-गुलफ़म आया
मकतब में मिरे जुनूँ के मजनूँ