नक़्द-ए-दिल-ए-ख़ालिस कूँ मिरी क़ल्ब तूँ मत जान
है तुझ कूँ अगर शुबह तो कस देख तपा देख
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सनम हज़ार हुआ तो वही सनम का सनम
जिस ने तुझ हुस्न पर निगाह किया
क्यूँ तिरे गेसू कूँ गेसू बोलनाँ
वो ज़ुल्फ़ है तो हर्फ़-ए-ततार-ओ-ख़ुतन ग़लत
इस लब कूँ कब पसंद हैं रस्मी कटोरियाँ
या-रब कहाँ गया है वो सर्व-ए-शोख़-रा'ना
नज़र आता नहीं मुझ कूँ सबब क्या
जानाँ पे जी निसार हुआ क्या बजा हुआ
दिल-ए-नादाँ मिरा है बे-तक़सीर
जिस कूँ मुल्क-ए-बे-ख़ुदी का राज है
मैं न जाना था कि तू यूँ बे-वफ़ा हो जाएगा
काफ़िर हुआ हूँ रिश्ता-ए-ज़ुन्नार की क़सम