डूब जाता है मिरा जी जो कहूँ क़िस्सा-ए-दर्द
नींद आती है मुझी कूँ मिरे अफ़्साने में
Gulzar
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Allama Iqbal
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(381) Peoples Rate This
यार को बे-हिजाब देखा हूँ
कभी ला ला मुझे देते हो अपने हात सीं प्याला
मकतब-ए-इश्क़ का मोअल्लिम हूँ
तुझ पर फ़िदा हैं सारे हुस्न-ओ-जमाल वाले
हर किसी कूँ गुज़र-ए-इश्क़ में आनाँ मुश्किल
मुझ सीं ग़म दस्त-ओ-गरेबाँ न हुआ था सो हुआ
ऐ शोख़ गुलिस्ताँ मैं नहीं ये गुल-ए-रंगीं
अपना जमाल मुझ कूँ दिखाया रसूल आज
यक निगह सें लिया है वो गुलफ़ाम
कहते हैं तिरी ज़ुल्फ़ कूँ देख अहल-ए-शरीअत
इश्क़ ने ख़ूँ किया है दिल जिस का
डोरे नहीं हैं सुर्ख़ तिरी चश्म-ए-मस्त में