फ़िदा कर जान अगर जानी यही है
अरे दिल वक़्त-ए-बे-जानी यही है
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जुनूँ के शहर में नीं कम-अयार कूँ हुर्मत
बोलता हूँ जो वो बुलाता है
दिल में आ राह-ए-चश्म-ए-हैराँ सीं
तेरे अबरू की अजब बैत है हाली ऐ शोख़
सनम किस बंद सीं पहुँचूँ तिरे पास
जाँ-सिपारी दाग़ कत्था चूना है चश्म-ए-इन्तिज़ार
हम हैं मुश्ताक़-ए-जवाब और तुम हो उल्फ़त सीं बईद
अगर कुछ होश हम रखते तो मस्ताने हुए होते
ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीन-ए-यार क़हरी है
जब सें तुझ इश्क़ की गरमी का असर है मन में
देखा है जिस ने यार के रुख़्सार की तरफ़
सर्व-ए-गुलशन पर सुख़न उस क़द का बाला हो गया