कभी ला ला मुझे देते हो अपने हात सीं प्याला
कभी तुम शीशा-ए-दिल पर मिरे पथराव करते हो
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जब सें तुझ इश्क़ की गरमी का असर है मन में
जाँ-सिपारी दाग़ कत्था चूना है चश्म-ए-इन्तिज़ार
नयन की पुतली में ऐ सिरीजन तिरा मुबारक मक़ाम दिस्ता
मस्जिद वहशत में पढ़ता है तरावीह-ए-जुनूँ
नींद सीं खुल गईं मिरी आँखें सो देखा यार कूँ
मैं हूँ तो दिवाना प किसी ज़ुल्फ़ का नहीं हूँ
आया पिया शराब का प्याला पिया हुआ
दिल में ख़यालात-ए-रंगीं गुज़रते हैं जिऊँ बॉस फूलों के रंगों में रहिए
जान जाता है अब तो आ जानी
भरा कमाल-ए-वफ़ा सें ख़याल का शीशा
नियाज़-ए-बे-ख़ुदी बेहतर नमाज़-ए-ख़ुद-नुमाई सीं
अमल सें मय-परस्तों के तुझे क्या काम ऐ वाइ'ज़