तकिया-ए-मख़मली सिरहाने रख
लेकिन आँखों सीं अपनी ख़्वाब निकाल
Mir Taqi Mir
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वस्ल के दिन शब-ए-हिज्राँ की हक़ीक़त मत पूछ
सनम जब चीरा-ए-ज़र-तार बाँधे
यार को बे-हिजाब देखा हूँ
फ़जर उठ यार का दीदार करनाँ
मरहम तिरे विसाल का लाज़िम है ऐ सनम
इश्क़ में अव्वल फ़ना दरकार है
अव्वल सीं दिल मिरा जो गिरफ़्तार था सो है
डूब जाता है मिरा जी जो कहूँ क़िस्सा-ए-दर्द
तिरे सलाम के धज देख कर मिरे दिल ने
दिल मिरा साग़र-ए-शिकायत है
मुस्कुरा कर आशिक़ों पर मेहरबानी कीजिए
जलव-ए-जाँ-फ़ज़ा दिखाता रह