मुझ रंग ज़र्द ऊपर ग़ुस्से सीं लाल मत हो
ऐ सब्ज़ शाल वाले ऊदे रुमाल वाले
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यक निगह सें लिया है वो गुलफ़ाम
माइल हूँ गुल-बदन का मुझे गुल सीं क्या ग़रज़
इश्क़ में आ कि अक़्ल कूँ खोनाँ
मेरे जिगर के दर्द का चारा कब आएगा
कभी ला ला मुझे देते हो अपने हात सीं प्याला
मत करो शम्अ को बदनाम जलाती वो नहीं
ग़ैर तरफ़ क्यूँकि नज़र कर सकूँ
सीमाब जल गया तो उसे गर्द बोलिए
मिरा दिल नहीं है मेरे हात तुम बिन
जाँ-सिपारी दाग़ कत्था चूना है चश्म-ए-इन्तिज़ार
या-रब कहाँ गया है वो सर्व-ए-शोख़-रा'ना
अपना जमाल मुझ कूँ दिखाया रसूल आज