ये मेरे साथी हैं प्यारे साथी मगर इन्हें भी नहीं गवारा
मैं अपनी वहशत के मक़बरे से नई तमन्ना के ख़्वाब देखूँ
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बढ़ते चले गए जो वो मंज़िल को पा गए
सुना ये था बहुत आसूदा हैं साहिल के बाशिंदे
साथी मिरे कहाँ से कहाँ तक पहुँच गए
कभी इक़रार होना था कभी इंकार होना था
इल्म ओ फ़न के राज़-ए-सर-बस्ता को वा करता हुआ
हर बार ही मैं जान से जाने में रह गया
ये तो सच है कि वो सितमगर है
ख़ुद को हर रोज़ इम्तिहान में रख
इस महफ़िल में मैं भी क्या बेबाक हुआ
बना के वहम ओ गुमाँ की दुनिया हक़ीक़तों के सराब देखूँ