यहाँ हम ने किसी से दिल लगाया ही नहीं 'मंज़र'
कि इस दुनिया से आख़िर एक दिन बे-ज़ार होना था
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हर बार ही मैं जान से जाने में रह गया
सुना ये था बहुत आसूदा हैं साहिल के बाशिंदे
ख़ुद को हर रोज़ इम्तिहान में रख
तज़्किरा हो तिरा ज़माने में
इल्म ओ फ़न के राज़-ए-सर-बस्ता को वा करता हुआ
इस महफ़िल में मैं भी क्या बेबाक हुआ
जब इंसान को अपना कुछ इदराक हुआ
बना के वहम ओ गुमाँ की दुनिया हक़ीक़तों के सराब देखूँ
ये तो सच है कि वो सितमगर है
ये मेरे साथी हैं प्यारे साथी मगर इन्हें भी नहीं गवारा