यार Poetry (page 66)

नुमूद-ए-क़ुदरत-ए-पर्वरदिगार हम भी हैं

आग़ा अकबराबादी

नहीं मुमकिन कि तिरे हुक्म से बाहर मैं हूँ

आग़ा अकबराबादी

मुद्दत के बा'द इस ने लिखा मेरे नाम ख़त

आग़ा अकबराबादी

मलते हैं हाथ, हाथ लगेंगे अनार कब

आग़ा अकबराबादी

क्या बनाए साने-ए-क़ुदरत ने प्यारे हाथ पाँव

आग़ा अकबराबादी

ख़ुद मज़ेदार तबीअ'त है तो सामाँ कैसा

आग़ा अकबराबादी

जा लड़ी यार से हमारी आँख

आग़ा अकबराबादी

हज़ार जान से साहब निसार हम भी हैं

आग़ा अकबराबादी

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