समय Poetry (page 30)

दूर से शहर-ए-फ़िक्र सुहाना लगता है

अब्दुल अहद साज़

बुझ गई आग तो कमरे में धुआँ ही रखना

अब्दुल अहद साज़

ये अजब साअत-ए-रुख़्सत है कि डर लगता है

अब्बास ताबिश

वो आने वाला नहीं फिर भी आना चाहता है

अब्बास ताबिश

गुज़र गया वो ज़माना वो ज़ख़्म भर भी गए

अब्बास रिज़वी

बे-वज्ह नहीं उन का बे-ख़ुद को बुलाना है

अब्बास अली ख़ान बेखुद

कहते हैं कि उम्मीद पे जीता है ज़माना

आसी उल्दनी

दिल की बात क्या कहिए दिल अजीब बस्ती है

आसी रामनगरी

रोने को बहुत रोए बहुत आह-ओ-फ़ुग़ाँ की

आशुफ़्ता चंगेज़ी

जिस की न कोई रात हो ऐसी सहर मिले

आशुफ़्ता चंगेज़ी

लहू लहू आरज़ू बदन का लिहाफ़ होगा

आनन्द सरूप अंजुम

तू वफ़ा कर के भूल जा मुझ को

आलोक श्रीवास्तव

समझ तो ये कि न समझे ख़ुद अपना रंग-ए-जुनूँ

आले रज़ा रज़ा

हमीं ने उन की तरफ़ से मना लिया दिल को

आले रज़ा रज़ा

अल्लाह नज़र कोई ठिकाना नहीं आता

आले रज़ा रज़ा

हम तो कहते थे ज़माना ही नहीं जौहर-शनास

आल-ए-अहमद सूरूर

ख़याल जिन का हमें रोज़-ओ-शब सताता है

आल-ए-अहमद सूरूर

दास्तान-ए-शौक़ कितनी बार दोहराई गई

आल-ए-अहमद सूरूर

नहीं मुमकिन कि तिरे हुक्म से बाहर मैं हूँ

आग़ा अकबराबादी

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