हम तो कहते थे ज़माना ही नहीं जौहर-शनास
ग़ौर से देखा तो अपने में कमी पाई गई
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Anwar Masood
Parveen Shakir
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1393) Peoples Rate This
कुछ तो है वैसे ही रंगीं लब ओ रुख़्सार की बात
लोग माँगे के उजाले से हैं ऐसे मरऊब
आज पी कर भी वही तिश्ना-लबी है साक़ी
ज़ंजीर से जुनूँ की ख़लिश कम न हो सकी
तमाम उम्र कटी उस की जुस्तुजू करते
जब कभी बात किसी की भी बुरी लगती है
सफ़र तवील सही हासिल-ए-सफ़र क्या था
हम जिस के हो गए वो हमारा न हो सका
टीपू की आवाज़
हमें तो मय-कदे का ये निज़ाम अच्छा नहीं लगता
हम बर्क़-ओ-शरर को कभी ख़ातिर में न लाए