समय Poetry (page 4)

ख़ाक-ए-हिंद

तिलोकचंद महरूम

हिज्राँ की शब जो दर्द के मारे उदास हैं

तिलोकचंद महरूम

बदनाम हूँ पर आशिक़-ए-बदनाम तुम्हारा

तिलोकचंद महरूम

ये जो है ताना-बाना होगा क्या

तरकश प्रदीप

मिज़ाज अपना मिला ही नहीं ज़माने से

तारिक़ क़मर

लहु लहु आँखें

तारिक़ क़मर

ये रोज़-ओ-शब की मसाफ़त ये आना जाना मिरा

तारिक़ क़मर

तुझ को इस तरह कहाँ छोड़ के जाना था हमें

तारिक़ नईम

जीना क्या है पिछ्ला क़र्ज़ उतार रहा हूँ

तारिक़ नईम

इस रात किसी और क़लम-रौ में कहीं था

तारिक़ नईम

ग़म-ए-ज़माना जब न हो ग़म-ए-वजूद ढूँड लूँ

तनवीर अंजुम

कभी वो मिस्ल-ए-गुल मुझे मिसाल-ए-ख़ार चाहिए

तनवीर अंजुम

दुखों के रूप बहुत और सुखों के ख़्वाब बहुत

तनवीर अंजुम

हम हिज्र के रस्तों की हवा देख रहे हैं

तालीफ़ हैदर

जुनूँ ने ज़हर का पियाला पिया आहिस्ता आहिस्ता

तलअत इशारत

जी में आता है कि चल कर जंगलों में जा रहें

ताज सईद

तुम कोई इस से तवक़्क़ो' न लगाना मरे दोस्त

तैमूर हसन

मिरा बातिन मुझे हर पल नई दुनिया दिखाता है

तैमूर हसन

तिरी गली में गए कितने माह ओ साल हुए

तहसीन फ़िराक़ी

हमा-तन गोश इक ज़माना था

ताबिश देहलवी

लुत्फ़ का रब्त है कोई न जफ़ा का रिश्ता

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

भूले तो जैसे रब्त कोई दरमियाँ न था

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश

ताबाँ अब्दुल हई

किसी का काम दिल इस चर्ख़ से हुआ भी है

ताबाँ अब्दुल हई

उन्स है ख़ाना-ए-सय्याद से गुलशन कैसा

तअशशुक़ लखनवी

ख़्वाबों की हक़ीक़त भी बता क्यूँ नहीं देते

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

दर्द में लज़्ज़त बहुत अश्कों में रा'नाई बहुत

सय्यद ज़मीर जाफ़री

चाहूँ तो अभी हिज्र के हालात बता दूँ

सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद

अक़ब से वार था आख़िर मैं आह क्या करता

सय्यद शकील दस्नवी

तंदुरुस्ती दी ख़ुदा ने तो नक़ाहत न गई

सय्यद नज़ीर हसन सख़ा देहलवी

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