जरूरत Poetry (page 3)

तुझ को ही सोचता रहूँ फ़ुर्सत नहीं रही

सय्यद अनवार अहमद

कल पहली बार उस से इनायत सी हो गई

सय्यद अनवार अहमद

मुनव्वर और मुबहम इस्तिआरे देख लेता हूँ

सय्यद अमीन अशरफ़

मुँह अँधेरे तेरी यादों से निकलना है मुझे

स्वप्निल तिवारी

याद है इक एक लम्हे का खिचाव देखना

सूरज नारायण

आबरू की किसे ज़रूरत है

सुनील कुमार जश्न

हम ने माना कि जहाँ हम थे गुलिस्ताँ तो न था

सुल्तान गौरी

फ़ुर्सत में रहा करते हैं फ़ुर्सत से ज़्यादा

सुल्तान अख़्तर

तेरा ग़म तेरी आरज़ू कब तक

सुल्तान अख़्तर

फ़ुर्सत में रहा करते हैं फ़ुर्सत से ज़्यादा

सुल्तान अख़्तर

कि ख़ुद-नुमाई न तश्हीर चाहते हैं हम

सुहैल अख़्तर

हमारे जैसे ही लोगों से शहर भर गए हैं

सुहैल अख़्तर

तुम ने महसूस कहाँ मेरी ज़रूरत की है

सिया सचदेव

वो ज़कात-ए-दौलत-ए-सब्र भी मिरे चंद अश्कों के नाम से

सिराज लखनवी

सड़क-छाप

सिदरा सहर इमरान

इस तरह पहुँचेगा कैसे पाया-ए-तकमील को

शुजा ख़ावर

सहरा में कड़ी धूप का डर होते हुए भी

शोज़ेब काशिर

उलमा-ए-ज़िंदानी

शिबली नोमानी

होती है लबों पर ख़ामोशी आँखों में मोहब्बत होती है

शेवन बिजनौरी

ग़ज़ब है जुस्तजू-ए-दिल का ये अंजाम हो जाए

शेरी भोपाली

अब तो जिस रोज़ से रूठी है मोहब्बत उस की

शीश मोहम्मद इस्माईल आज़मी

आँखों में रात ख़्वाब का ख़ंजर उतर गया

शीन काफ़ निज़ाम

संग-आबाद की एक दुकाँ

शाज़ तमकनत

न महफ़िल ऐसी होती है न ख़ल्वत ऐसी होती है

शाज़ तमकनत

दर्द में जब कमी सी होती है

शातिर हकीमी

काट कर जो राह का बूढ़ा शजर ले जाएगा

शर्मा तासीर

वो बात सोच के मैं जिस को मुद्दतों जीता

शारिक़ कैफ़ी

शायद उसे ज़रूरत हो अब पर्दे की

शारिक़ कैफ़ी

वो दिन भी थे कि इन आँखों में इतनी हैरत थी

शारिक़ कैफ़ी

बैत-ए-अंकबूत

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

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