ज़ुल्फ़ Poetry (page 32)

कमाँ हुआ है क़द अबरू के गोशा-गीरों का

आबरू शाह मुबारक

इश्क़ है इख़्तियार का दुश्मन

आबरू शाह मुबारक

इस ज़ुल्फ़-ए-जाँ-गुज़ा कूँ सनम की बला कहो

आबरू शाह मुबारक

गली अकेली है प्यारे अँधेरी रातें हैं

आबरू शाह मुबारक

दिल है तिरे प्यार करने कूँ

आबरू शाह मुबारक

बहार आई गली की तरह दिल खोल

आबरू शाह मुबारक

आया है सुब्ह नींद सूँ उठ रसमसा हुआ

आबरू शाह मुबारक

न जाने रब्त-ए-मसर्रत है किस क़दर ग़म से

आबिद नामी

कुछ न किया अरबाब-ए-जुनूँ ने फिर भी इतना काम किया

अब्दुर रऊफ़ उरूज

क्या कीजिए रक़म सनद-ए-एहतिशाम-ए-ज़ुल्फ़

अब्दुल्ल्ला ख़ाँ महर लखनवी

ख़ुश-क़दाँ जब ख़िराम करते हैं

अब्दुल वहाब यकरू

पूछी न ख़बर कभी हमारी

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

हर आन जल्वा नई आन से है आने का

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

ग़ैर के दिल पे तू ऐ यार ये क्या बाँधे है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

क्या यहाँ देखिए क्या वहाँ देखिए

अब्दुल मन्नान तरज़ी

खुली जब आँख तो देखा कि था बाज़ार का हल्क़ा

अब्दुल मन्नान तरज़ी

अब नहीं जन्नत मशाम-ए-कूचा-ए-यार की शमीम

अब्दुल मजीद सालिक

हम-नफ़सो उजड़ गईं मेहर-ओ-वफ़ा की बस्तियाँ

अब्दुल मजीद सालिक

चराग़-ए-ज़िंदगी होगा फ़रोज़ाँ हम नहीं होंगे

अब्दुल मजीद सालिक

ज़बाँ पर आप का नाम आ रहा था

अब्दुल हमीद अदम

वो अहद-ए-जवानी वो ख़राबात का आलम

अब्दुल हमीद अदम

सितारों के आगे जो आबादियाँ हैं

अब्दुल हमीद अदम

मुश्किल ये आ पड़ी है कि गर्दिश में जाम है

अब्दुल हमीद अदम

ख़ुश हूँ कि ज़िंदगी ने कोई काम कर दिया

अब्दुल हमीद अदम

खुली वो ज़ुल्फ़ तो पहली हसीन रात हुई

अब्दुल हमीद अदम

जहाँ वो ज़ुल्फ़-ए-बरहम कारगर महसूस होती है

अब्दुल हमीद अदम

ग़म-ए-मोहब्बत सता रहा है ग़म-ए-ज़माना मसल रहा है

अब्दुल हमीद अदम

दिल है बड़ी ख़ुशी से इसे पाएमाल कर

अब्दुल हमीद अदम

छेड़ो तो उस हसीन को छेड़ो जो यार हो

अब्दुल हमीद अदम

अफ़्साना चाहते थे वो अफ़्साना बन गया

अब्दुल हमीद अदम

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