ज़ुल्फ़ Poetry (page 3)

दर्द जूँ शम्अ' मिले है शब-ए-हिज्राँ मुझ को

वली उज़लत

ऐ यार मुझ अफ़सुर्दा-ए-हिज्राँ को पहुँच तू

वली उज़लत

अबस तोड़ा मिरा दिल नाज़ सिखलाने के काम आता

वली उज़लत

तिरा मजनूँ हूँ सहरा की क़सम है

वली मोहम्मद वली

शग़्ल बेहतर है इश्क़-बाज़ी का

वली मोहम्मद वली

मुश्ताक़ हैं उश्शाक़ तिरी बाँकी अदा के

वली मोहम्मद वली

मैं आशिक़ी में तब सूँ अफ़्साना हो रहा हूँ

वली मोहम्मद वली

जिस दिलरुबा सूँ दिल कूँ मिरे इत्तिहाद है

वली मोहम्मद वली

इश्क़ बेताब-ए-जाँ-गुदाज़ी है

वली मोहम्मद वली

दिल तलबगार-ए-नाज़-ए-मह-वश है

वली मोहम्मद वली

दिखाते हैं जो ये सनम देखते हैं

वाजिद अली शाह अख़्तर

चाक चाक अपना गरेबाँ न हुआ था सो हुआ

वाजिद अली शाह अख़्तर

दर्द का मेरे यक़ीं आप करें या न करें

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आज़ाद उस से हैं कि बयाबाँ ही क्यूँ न हो

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

न दरमियाँ न कहीं इब्तिदा में आया है

विशाल खुल्लर

मिरे शानों पे उन की ज़ुल्फ़ लहराई तो क्या होगा

उनवान चिश्ती

जब ज़ुल्फ़ शरीर हो गई है

उनवान चिश्ती

हाए इक शख़्स जिसे हम ने भुलाया भी नहीं

उम्मीद फ़ाज़ली

बसंत और होली की बहार

उफ़ुक़ लखनवी

फिर से बिखरी है तिरी ज़ुल्फ़ मिरे शानों पर

तुफ़ैल बिस्मिल

इक बहाना है तुझे याद किए जाने का

तुफ़ैल बिस्मिल

ये किस से आज बरहम हो गई है

तिलोकचंद महरूम

वो दिल कहाँ है अहल-ए-नज़र दिल कहें जिसे

तिलोकचंद महरूम

ताइर-ए-दिल के लिए ज़ुल्फ़ का जाल अच्छा है

तिलोकचंद महरूम

सितम कोई नया ईजाद करना

तिलोकचंद महरूम

क्या सुनाएँ किसी को हाल अपना

तिलोकचंद महरूम

क्या बताऊँ कि है किस ज़ुल्फ़ का सौदा मुझ को

तौसीफ़ तबस्सुम

दिल था पहलू में तो कहते थे तमन्ना क्या है

तौसीफ़ तबस्सुम

सदियों लहू से दिल की हिकायत लिखी गई

तसनीम फ़ारूक़ी

करता हूँ तेरी ज़ुल्फ़ से दिल का मुबादला

मीर तस्कीन देहलवी

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