सितम कोई नया ईजाद करना
तो मुझ को भी मिरी जाँ याद करना
क़यामत है दिल-ए-नालाँ क़यामत
तिरा रह रह के ये फ़रियाद करना
चलो अब लुत्फ़ ही को आज़माओ
तुम्हें आता नहीं बेदाद करना
असीर-ए-ज़ुल्फ़ है 'महरूम' उन का
जिन्हें आता नहीं आज़ाद करना
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Allama Iqbal
Gulzar
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Anwar Masood
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(547) Peoples Rate This
काला इंसान हो या कोई ज़र्द इंसान
ताइर-ए-दिल के लिए ज़ुल्फ़ का जाल अच्छा है
ये फ़ितरत का तक़ाज़ा था कि चाहा ख़ूब-रूओं को
शहीद भगत-सिंह
न रही बे-ख़ुदी-ए-शौक़ में इतनी भी ख़बर
फ़ित्ना-आरा शोरिश-ए-उम्मीद है मेरे लिए
वही अरमान जैसे जी जो मुश्किल से निकलते हैं
है ये पुर-दर्द दास्ताँ 'महरूम'
अक़्ल को क्यूँ बताएँ इश्क़ का राज़
साफ़ आता है नज़र अंजाम हर आग़ाज़ का
वो दिल कहाँ है अहल-ए-नज़र दिल कहें जिसे
बाद-ए-तर्क-ए-आरज़ू बैठा हूँ कैसा मुतमइन