ज़ुल्फ़ Poetry (page 5)

कराची का ट्रैफ़िक

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

ऐब्स्ट्रैक्ट आर्ट

सय्यद मोहम्मद जाफ़री

मंसब-ए-इश्क़ से कुछ ओहदा-बरा मैं ही हुआ

सय्यद काशिफ़ रज़ा

फ़र्द को अस्र की रफ़्तार लिए फिरती है

सय्यद हामिद

वो बुत मुब्तला-तलब मेहर-तलब वफ़ा-तलब

सय्यद अाग़ा अली महर

वो बज़्म-ए-ग़ैर में बा-सद-वक़ार बैठे हैं

सय्यद अाग़ा अली महर

शब-ए-हिज्राँ की दराज़ी से परेशान न था

सय्यद आबिद अली आबिद

वाइज़-ए-शहर ख़ुदा है मुझे मा'लूम न था

सय्यद आबिद अली आबिद

किसी की इश्वा-गरी से ब-ग़ैर-ए-फ़स्ल-ए-बहार

सय्यद आबिद अली आबिद

ग़म-ए-दौराँ ग़म-ए-जानाँ का निशाँ है कि जो था

सय्यद आबिद अली आबिद

दिल का मोआ'मला निगह-ए-आशना के साथ

सय्यद आबिद अली आबिद

सती

सुरूर जहानाबादी

अपनी ज़मीं से दूर ज़मान-ओ-मकाँ से दूर

सुलतान फ़ारूक़ी

हिसाब-ए-उम्र करो या हिसाब-ए-जाम करो

सुलैमान अरीब

सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई

सूफ़ी तबस्सुम

दिल को आए कि निगाहों को यक़ीं आ जाए

सूफ़ी तबस्सुम

ये जो काली घटा छाई हुई है

सुदर्शन कुमार वुग्गल

तिरी ज़ुल्फ़ के पेच-ओ-ख़म देखते हैं

सुदर्शन कुमार वुग्गल

शायद रुख़-ए-हयात से सरके नक़ाब और

सिराजुद्दीन ज़फ़र

मौसम-ए-गुल तिरे इनआ'म अभी बाक़ी हैं

सिराजुद्दीन ज़फ़र

दर-ए-मय-ख़ाना से दीवार-ए-चमन तक पहुँचे

सिराजुद्दीन ज़फ़र

और खुल जा कि मआ'रिफ़ की गुज़रगाहों में

सिराजुद्दीन ज़फ़र

वो ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन लगती नहीं हात

सिराज औरंगाबादी

तुम्हारी ज़ुल्फ़ का हर तार मोहन

सिराज औरंगाबादी

तुझ ज़ुल्फ़ में दिल ने गुम किया राह

सिराज औरंगाबादी

मैं हूँ तो दिवाना प किसी ज़ुल्फ़ का नहीं हूँ

सिराज औरंगाबादी

क्यूँकि होवे ज़ाहिद ख़ुद-बीं मुरीद-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार

सिराज औरंगाबादी

खुल गए उस की ज़ुल्फ़ के देखे

सिराज औरंगाबादी

कहते हैं तिरी ज़ुल्फ़ कूँ देख अहल-ए-शरीअत

सिराज औरंगाबादी

हिज्र की रातों में लाज़िम है बयान-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार

सिराज औरंगाबादी

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