विद्वान Poetry (page 4)

रंग है ऐ साक़ी-ए-सरशार क़ैसर-बाग़ में

वज़ीर अली सबा लखनवी

जो अदू-ए-बाग़ हो बरबाद हो

वज़ीर अली सबा लखनवी

दिल-ए-पुर दाग़ बाग़ किस का है

वज़ीर अली सबा लखनवी

बाग़-ए-आलम में है बे-रंग बयान-ए-वाइ'ज़

वज़ीर अली सबा लखनवी

ऐ सनम सब हैं तिरे हाथों से नालाँ आज-कल

वज़ीर अली सबा लखनवी

ऐ सबा जज़्ब पे जिस दम दिल-ए-नाशाद आया

वज़ीर अली सबा लखनवी

अदू-ए-जाँ बुत-ए-बे-बाक निकला

वज़ीर अली सबा लखनवी

आया जो मौसम-ए-गुल तो ये हिसाब होगा

वज़ीर अली सबा लखनवी

ख़ुद से हुआ जुदा तो मिला मर्तबा तुझे

वज़ीर आग़ा

ज़र्रा हरीफ़-ए-मेहर दरख़्शाँ है आज कल

वासिफ़ देहलवी

अगर ख़ू-ए-तहम्मुल हो तो कोई ग़म नहीं होता

वासिफ़ देहलवी

ख़ुशी दामन-कशाँ है दिल असीर-ए-ग़म है बरसों से

वक़ार मानवी

ख़ुशी दामन-कशाँ है दिल असीर-ए-ग़म है बरसों से

वक़ार मानवी

अगर रोना ही अब मेरा मुक़द्दर है मोहब्बत में

वक़ार मानवी

ज़िंदगी इतनी बे-मज़ा क्यूँ है

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

चश्म-ए-तर है सहाब है क्या है

वक़ार हिल्म सय्यद नगलवी

ग़म-ए-मोहब्बत है कार-फ़रमा दुआ से पहले असर से पहले

वक़ार बिजनोरी

कार्ल मार्क्स

वामिक़ जौनपुरी

मिरे फ़िक्र ओ फ़न को नई फ़ज़ा नए बाल-ओ-पर की तलाश है

वामिक़ जौनपुरी

ख़लिश सुकूँ का मुदावा नहीं तो कुछ भी नहीं

वामिक़ जौनपुरी

इस तरह से कश्ती भी कोई पार लगे है

वामिक़ जौनपुरी

दिल तोड़ कर वो दिल में पशीमाँ हुआ तो क्या

वामिक़ जौनपुरी

जो अज़-ख़ुद-रफ़्ता है गुमराह है वो रहनुमा मेरा

वलीउल्लाह मुहिब

वहीं जी उठते हैं मुर्दे ये क्या ठोकर से छूना है

वलीउल्लाह मुहिब

नहीं दुनिया में सिवा ख़ार-ओ-ख़स-ए-कूचा-ए-दोस्त

वलीउल्लाह मुहिब

मेरी ख़बर न लेना ऐ यार है तअ'ज्जुब

वलीउल्लाह मुहिब

मय-ए-गुल-गूँ के जो शीशे में परी रहती है

वलीउल्लाह मुहिब

किया बाग़-ए-जहाँ में नाम उन का सर्व कह कह कर

वलीउल्लाह मुहिब

जो मरीज़ इश्क़ के हैं उन को शिफ़ा है कि नहीं

वलीउल्लाह मुहिब

देखा जो कुछ जहाँ में कोई दम ये सब नहीं

वलीउल्लाह मुहिब

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