आंच Poetry (page 1)

अधूरी

ज़िया जालंधरी

तुम्हारी चाहत की चाँदनी से हर इक शब-ए-ग़म सँवर गई है

ज़िया जालंधरी

कितनी देर और है ये बज़्म-ए-तरब-नाक न कह

ज़िया जालंधरी

ऐ दिल-नशीं तलाश तिरी कू-ब-कू न थी

ज़िया जालंधरी

शायद अब भी कोई शरर बाक़ी हो 'ज़ेब'

ज़ेब ग़ौरी

रात दमकती है रह रह कर मद्धम सी

ज़ेब ग़ौरी

झुके हुए पेड़ों के तनों पर छाप है चंचल धारे की

ज़ेब ग़ौरी

वो हर्फ़-ओ-सौत-ओ-सदा

ज़ाहिदा ज़ैदी

शब-ए-ग़म याद उन की आ रही है

ज़हीर काश्मीरी

अहल-ए-दिल मिलते नहीं अहल-ए-नज़र मिलते नहीं

ज़हीर काश्मीरी

हवा बदल गई उस बेवफ़ा के होने से

ज़फ़र इक़बाल

पटरियों की चमकती हुई धार पर फ़ासले अपनी गर्दन कटाते रहे

यूसुफ़ तक़ी

अता-ए-अब्र से इंकार करना चाहिए था

यासमीन हमीद

सिखा दिया है ज़माने ने बे-बसर रहना

वज़ीर आग़ा

मोहब्बत ना-समझ होती है समझाना ज़रूरी है

वसीम बरेलवी

छतरी लगा के घर से निकलने लगे हैं हम

वाली आसी

ना-मुरादी ही लिखी थी सो वो पूरी हो गई

वजद चुगताई

मावरा

वहीद अख़्तर

न दरमियाँ न कहीं इब्तिदा में आया है

विशाल खुल्लर

इश्क़ में हर तमन्ना-ए-क़ल्ब-ए-हज़ीं सुर्ख़ आँसू बहाए तो मैं क्या करूँ

तुर्फ़ा क़ुरैशी

फूल होंटों को ग़ज़ल-ख़्वाँ देखना

तुफ़ैल बिस्मिल

फ़िक्र की आँच में पिघले तो ये मालूम हुआ

तनवीर सामानी

रोज़ तब्दील हुआ है मिरे दिल का मौसम

तनवीर सामानी

रिदा-ए-संग ओढ़ कर न सो गया हो काँच भी

तनवीर मोनिस

हर रस्म पर नज़र को झुकाते हुए चले

तलअत इशारत

शिकवा गर कीजे तो होता है गुमाँ तक़्सीर का

सय्यद हामिद

उतर के धूप जब आएगी शब के ज़ीने से

सय्यद अहमद शमीम

दिल का मोआ'मला निगह-ए-आशना के साथ

सय्यद आबिद अली आबिद

मिरे घर में न होगी रौशनी क्या

स्वप्निल तिवारी

बुलबुल ओ परवाना

सुरूर जहानाबादी

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