आंखें Poetry (page 44)

तीसरी पाली

अख़्तर राही

जीते-जी दुख सुख के लम्हे आते जाते रहते हैं

अख़तर इमाम रिज़वी

जो मुझ को देख के कल रात रो पड़ा था बहुत

अख़्तर होशियारपुरी

बारहा ठिठका हूँ ख़ुद भी अपना साया देख कर

अख़्तर होशियारपुरी

रहने दे ये तंज़ के नश्तर अहल-ए-जुनूँ बेबाक नहीं

अख़्तर अंसारी अकबराबादी

हर वक़्त नौहा-ख़्वाँ सी रहती हैं मेरी आँखें

अख़्तर अंसारी

वही है गर्दिश-ए-दौराँ वही लैल-ओ-नहार अब भी

अख़लाक़ बन्दवी

फ़लक से चाँद चमन से गुलाब ले आए

अख़लाक़ बन्दवी

अभी अश्कों में ख़ूँ शामिल नहीं है

अख़लाक़ बन्दवी

दश्त-ए-अदम का सन्नाटा

अकबर हैदराबादी

जब सुब्ह की दहलीज़ पे बाज़ार लगेगा

अकबर हैदराबादी

जवानी की है आमद शर्म से झुक सकती हैं आँखें

अकबर इलाहाबादी

यूँ मिरी तब्अ से होते हैं मआनी पैदा

अकबर इलाहाबादी

न रूह-ए-मज़हब न क़ल्ब-ए-आरिफ़ न शाइराना ज़बान बाक़ी

अकबर इलाहाबादी

जब यास हुई तो आहों ने सीने से निकलना छोड़ दिया

अकबर इलाहाबादी

हर क़दम कहता है तू आया है जाने के लिए

अकबर इलाहाबादी

दिल-ए-मायूस में वो शोरिशें बरपा नहीं होतीं

अकबर इलाहाबादी

हर एक सुब्ह वज़ू करती हैं मिरी आँखें

अजमल सिद्दीक़ी

दुखे दिलों पे जो पड़ जाए वो तबीब नज़र

अजमल सिद्दीक़ी

क्यूँ कहूँ कोई क़द-आवर नहीं आया अब तक

आजिज़ मातवी

कहा तख़्लीक़-ए-फ़न बोले बहुत दुश्वार तो होगी

ऐतबार साजिद

मेरे हमराह सितारे कभी जुगनू निकले

ऐनुद्दीन आज़िम

ताबिश ये भला कौन सी रुत आई है जानी

ऐन ताबिश

नज़्म

ऐन रशीद

लुटेरों के लिए सोती हैं आँखें

अहसन यूसुफ़ ज़ई

जहाँ शीशा है पत्थर जागते हैं

अहसन यूसुफ़ ज़ई

हाँ नहीं के बीच धुँदलाई सी शाम

अहसन यूसुफ़ ज़ई

काट गई कोहरे की चादर सर्द हवा की तेज़ी माप

अहसन शफ़ीक़

एहसास की मंज़िल से गुज़र जाएगा आख़िर

अहमद ज़िया

तन्हाई ने पर फैलाए रात ने अपनी ज़ुल्फ़ें

अहमद ज़फ़र

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