आशना Poetry (page 8)

कोई तो तर्क-ए-मरासिम पे वास्ता रह जाए

साबिर ज़फ़र

दरीचा बे-सदा कोई नहीं है

साबिर ज़फ़र

ये जमाल क्या ये जलाल क्या ये उरूज क्या ये ज़वाल क्या

सादुल्लाह शाह

मिरे सिमटे लहू का इस्तिआरा ले गया कोई

रियाज़ लतीफ़

सितम-ए-ना-रवा को रोते हैं

रियाज़ ख़ैराबादी

सर-ए-राह इक हादिसा हो गया

ऋषि पटियालवी

अल्लाह के भी घर से है कू-ए-बुताँ अज़ीज़

रिन्द लखनवी

रहा असीर कई साल नक़्श-ए-पा की तरह

रिफ़अत सुलतान

हुए जब से मोहब्बत-आश्ना हम

रिफ़अत सुलतान

शहर-ए-शोर-ओ-शर तन्हा घर के बाम-ओ-दर तन्हा

रिफ़अत सरोश

शहर-बानो के लिए एक नज़्म

रहमान फ़ारिस

क्या पूछते हो मुझ को मोहब्बत में क्या मिला

रज़ा जौनपुरी

जुनूँ का राज़ मोहब्बत का भेद पा न सकी

रज़ा हमदानी

तबीब देख के मुझ को दवा न कुछ बोला

रज़ा अज़ीमाबादी

मेरे नाले पर नहीं तुझ को तग़ाफ़ुल के सिवा

रज़ा अज़ीमाबादी

मैं ही नहीं हूँ बरहम उस ज़ुल्फ़-ए-कज-अदा से

रज़ा अज़ीमाबादी

सवाल-ए-इश्क़ पर ता-हश्र चुप रहना पड़ा मुझ को

रविश सिद्दीक़ी

नक़ाब-ए-शब में छुप कर किस की याद आई समझते हैं

रविश सिद्दीक़ी

लगी है भीड़ बड़ा मय-कदे का नाम भी है

रविश सिद्दीक़ी

क्या कहूँ क्या मिला है क्या न मिला

रविश सिद्दीक़ी

ख़ल्वती-ए-ख़याल को होश में कोई लाए क्यूँ

रविश सिद्दीक़ी

कुछ हद भी ऐ फ़लक सितम-ए-ना-रवा की है

रसूल जहाँ बेगम मख़फ़ी बदायूनी

जब तुझे ख़ुद आप से बेगानगी हो जाएगी

रासिख़ अज़ीमाबादी

कभी यूँ भी करो शहर-ए-गुमाँ तक ले चलो मुझ को

राशिद तराज़

साक़ी-ए-रंगीं-अदा था बादा-ए-गुलफ़ाम था

रशीद शाहजहाँपुरी

साक़ी-ए-रंगीं-अदा था बादा-ए-गुलफ़ाम था

रशीद शाहजहाँपुरी

अजब मअरका

राशिद जमाल फ़ारूक़ी

क़ैद में रक्खा गया क़तरा तो ग़लताँ हो गया

रशीद कौसर फ़ारूक़ी

उम्र गुज़री रहगुज़र के आस-पास

रसा चुग़ताई

ज़िंदाँ में भी वही लब-ओ-रुख़्सार देखते

राम रियाज़

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