आशना Poetry (page 6)

ज़मीं अपने लहू से आश्ना होने ही वाली है

शहज़ाद अहमद

देख अब अपने हयूले को फ़ना होते हुए

शहज़ाद अहमद

एक सियासी नज़्म

शहरयार

हवा के हौसले ज़ंजीर करना चाहता है

शहनाज़ नूर

न ख़ुदा है न नाख़ुदा है कोई

शाहिद इश्क़ी

मुब्तला रूह के अज़ाब में हूँ

शाहिद इश्क़ी

जिस को चाहा था न पाया जो न चाहा था मिला

शाहिद इश्क़ी

दिए हैं रंज सारे आगही ने

शाहिद इश्क़ी

निकहत-ए-गुल हैं या सबा हैं हम

शाह नसीर

न ज़िक्र-ए-आश्ना ने क़िस्सा-ए-बेगाना रखते हैं

शाह नसीर

न क्यूँ कि अश्क-ए-मुसलसल हो रहनुमा दिल का

शाह नसीर

कुछ सरगुज़िश्त कह न सके रू-ब-रू क़लम

शाह नसीर

इस दिल को हम-कनार किया हम ने क्या किया

शाह नसीर

बे-ख़ुदी में अजब मज़ा देखा

शाह आसिम

चर्चे हर इक ज़बान पे हुस्न-ए-बुताँ के हैं

शाग़िल क़ादरी

सदियों तुम्हारी याद में शमएँ जलाएँगे

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

मज़ा शबाब का जब है कि बा-ख़ुदा भी रहे

शायर फतहपुरी

मुश्किल में कब किसी का कोई आश्ना हुआ

शाद लखनवी

ता-उम्र आश्ना न हुआ दिल गुनाह का

शाद अज़ीमाबादी

नज़र चुरा गए इज़हार-ए-मुद्दआ से मिरे

शानुल हक़ हक़्क़ी

मोहब्बत ख़ार-ए-दामन बन के रुस्वा हो गई आख़िर

शानुल हक़ हक़्क़ी

जज़्बा-ए-मोहब्बत को तीर-ए-बे-ख़ता पाया

शाद आरफ़ी

ज़ब्त से ना-आश्ना हम सब्र से बेगाना हम

सीमाब अकबराबादी

इदराक ख़ुद-आश्ना नहीं है

सीमाब अकबराबादी

बदन से रूह रुख़्सत हो रही है

सीमाब अकबराबादी

अब क्या बताऊँ मैं तिरे मिलने से क्या मिला

सीमाब अकबराबादी

मआल-ए-इशक़-ओ-मुहब्बत से आश्ना तो नहीं

सय्यद आशूर काज़मी

कोई भी लफ़्ज़-ए-इबरत-आश्ना मैं पढ़ नहीं सकता

सय्यद नसीर शाह

नसीम है तिरे कूचे में और सबा भी है

मोहम्मद रफ़ी सौदा

हिन्दू हैं बुत-परस्त मुसलमाँ ख़ुदा-परस्त

मोहम्मद रफ़ी सौदा

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