मुश्किल में कब किसी का कोई आश्ना हुआ
तलवार जब गले से मिली सर जुदा हुआ
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न तड़पने की इजाज़त है न फ़रियाद की है
ख़ुदा का डर न होता गर बशर को
कहते हैं नाला-ए-हज़ीं सुन के
इस से बेहतर और कह लेंगे अगर ज़िंदा हैं 'शाद'
दुनिया भी अजब हसीन ज़न है
सुना हम को आते जो अंदर से बाहर
लब-ब-लब बिंत-उल-अनब हर-दम रहे
सोहबत-ए-वस्ल है मसदूद हैं दर हाए हिजाब
तस्वीर मिरी है अक्स तिरा तू और नहीं मैं और नहीं
जी जाऊँ जो बंद नातिक़ा हो
जो मुर्ग़-ए-क़िबला-नुमा बन के आशियाँ से चले
क्या कहूँ ग़ुंचा-ए-गुल नीम-दहाँ है कुछ और