जब तुझे ख़ुद आप से बेगानगी हो जाएगी
आश्ना तब तुझ से वो देर-आश्ना हो जाएगा
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शैख़-ए-हरम उस बुत का परस्तार हुआ है
तुम्हें ऐसा बे-रहम जाना न था
क्या करेगा जा के बैतुल्लाह तू
शागिर्द हैं हम 'मीर' से उस्ताद के 'रासिख़'
कोई हैरान है याँ कोई दिल-गीर
दिल ज़ुल्फ़-ए-बुताँ में है गिरफ़्तार हमारा
ग़फ़लत में कटी उम्र न हुश्यार हुए हम
ममनूँ ही रहा उस बुत-ए-काफ़िर की जफ़ा का
बाज़ार जहाँ में कोई ख़्वाहाँ नहीं तेरा