अच्छा Poetry (page 17)

उस को दुनिया और न उक़्बा चाहिए

बेदम शाह वारसी

तुम ख़फ़ा हो तो अच्छा ख़फ़ा हो

बेदम शाह वारसी

मुझे शिकवा नहीं बर्बाद रख बर्बाद रहने दे

बेदम शाह वारसी

इश्क़ के आसार हैं फिर ग़श मुझे आया देखो

बेदम शाह वारसी

हम मय-कदे से मर के भी बाहर न जाएँगे

बेदम शाह वारसी

ज़ब्त-ए-ग़म कर भी लिया तो क्या किया

बासित भोपाली

उन का बर्बाद-ए-करम कहने के क़ाबिल हो गया

बासित भोपाली

पूछते हैं वो इश्क़ का मतलब

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं

बशीर बद्र

वहशत में भी रुख़ जानिब-ए-सहरा न करेंगे

मिर्ज़ा रज़ा बर्क़

तर्सील

बलराज कोमल

मैं, एक और मैं

बलराज कोमल

दीवारें

बलराज कोमल

चराग़ों में अँधेरा है अँधेरे में उजाले हैं

बद्र वास्ती

बुरा हो कर भी वो अच्छा बहुत है

बद्र वास्ती

गुम-शुदा मौसम का आँखों में कोई सपना सा था

बदनाम नज़र

फ़ीमेल बुल-फ़ाइटर

अज़रा अब्बास

तमीज़ अपने में ग़ैर में क्या तुम्हें जो अपना न कर सके हम

अज़ीज़ क़ैसी

ये मशवरा बहम उठ्ठे हैं चारा-जू करते

अज़ीज़ लखनवी

ये मशवरा बहम उठ्ठे हैं चारा-जू करते

अज़ीज़ लखनवी

रस्म ऐसों से बढ़ाना ही न था

अज़ीज़ लखनवी

दर्द जाता नज़र नहीं आता

अज़ीज़ हैदराबादी

एक दिए ने सदियों क्या क्या देखा है बतलाए कौन

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

अच्छाई से नाता जोड़ वर्ना फिर पछताएगा

अज़ीज़ अन्सारी

एक लम्हे को सही उस ने मुझे देखा तो है

अज़हर अदीब

ये भी अच्छा है कि सहरा में बनाया है मकाँ

अतहर शाह ख़ान जैदी

ये तिरी ज़ुल्फ़ का कुंडल तो मुझे मार चला

अतहर शाह ख़ान जैदी

मिरी मुश्किल अगर आसाँ बना देते तो अच्छा था

अतीक़ुर्रहमान सफ़ी

मसर्रत और ग़म दोनों की कोई हद ज़रूरी है

अतीक़ असर

शिकायत है बहुत लेकिन गिला अच्छा नहीं लगता

अतीक़ असर

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