अच्छा Poetry (page 3)

ये मानता हूँ कि सौ बार झूट कहता है

वक़ार ख़ान

ख़ता क़ुबूल नहीं है तो ख़ुद ख़ता कर देख

वक़ार ख़ान

देख पगली न दल लगा मिरे साथ

वक़ार ख़ान

बरसों बा'द मिला तो उस ने हम से पूछा कैसे हो

वक़ार फ़ातमी

फ़नकार के काम आई न कुछ दीदा-वरी भी

वामिक़ जौनपुरी

आप की नज़रों में शायद इस लिए अच्छा हूँ मैं

वलीउल्लाह वली

सुन रक्खो उसे दिल का लगाना नहीं अच्छा

वाजिद अली शाह अख़्तर

गिले शिकवे के दफ़्तर आ गए तुम

वजीह सानी

अपने अंदाज़ में औरों से जुदा लगते हो

वजीह सानी

सफ़र ही बाद-ए-सफ़र है तो क्यूँ न घर जाऊँ

वहीद अख़्तर

क़ुर्ब-ए-मंज़िल टूट जाए हौसला अच्छा नहीं

वफ़ा सिद्दीक़ी

लम्हा लम्हा शोर सा बरपा हुआ अच्छा लगा

विशाल खुल्लर

आख़िरी मुलाक़ातें

उरूज ज़ेहरा ज़ैदी

उस ने ख़ुद फ़ोन पे ये मुझ से कहा अच्छा था

त्रिपुरारि

न रही बे-ख़ुदी-ए-शौक़ में इतनी भी ख़बर

तिलोकचंद महरूम

दिल में कहते हैं कि ऐ काश न आए होते

तिलोकचंद महरूम

दिल के तालिब नज़र आते हैं हसीं हर जानिब

तिलोकचंद महरूम

ताइर-ए-दिल के लिए ज़ुल्फ़ का जाल अच्छा है

तिलोकचंद महरूम

हमारे वास्ते है एक जीना और मर जाना

तिलोकचंद महरूम

आख़िर ख़ुद अपने ही लहू में डूब के सर्फ़-ए-विग़ा होगे

तौसीफ़ तबस्सुम

बे-तलब कर के ज़रूरत भी चली जाए अगर

तसनीम आबिदी

ख़ूब-सूरत न हो कोई तो न हो बदनामी

मीर तस्कीन देहलवी

वो भी रस्मन यही पूछेगा कि कैसे हो तुम

तारिक़ क़मर

उस ने इक बार भी पूछा नहीं कैसा हूँ मैं

तारिक़ क़मर

अपने दुखों का हम ने तमाशा नहीं किया

तारिक़ मतीन

इश्क़ क्या शय है दोस्त क्या कहिए

तनवीर गौहर

दिलों में बुग़्ज़ के ख़ाने न होते

तनवीर गौहर

भेज कर शहर हारती है मुझे

तालिब हुसैन तालिब

वो जो मुमकिन न हो मुमकिन ये बना देता है

तैमूर हसन

मिला किसी से न अच्छा लगा सुख़न इस बार

तफ़ज़ील अहमद

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