वो भी रस्मन यही पूछेगा कि कैसे हो तुम
मैं भी हँसते हुए कह दूँगा कि अच्छा हूँ मैं
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कैसे रिश्तों को समेटें ये बिखरते हुए लोग
इस लहजे से बात नहीं बन पाएगी
फ़ुरात-ए-इस्मत के साहिलों पर
लहु लहु आँखें
देखें कितने चाहने वाले निकलेंगे
ये किस की प्यास के छींटे पड़े हैं पानी पर
ये आरज़ू थी उसे आइना बनाते हम
कौन सा मैं जवाज़ दूँ सूरत-ए-हाल के लिए
ज़ेहन पर बोझ रहा, दिल भी परेशान हुआ
जितने अल्फ़ाज़ हैं सब कहे जा चुके
अपनी पलकों के शबिस्तान में रक्खा है तुम्हें