कैसे रिश्तों को समेटें ये बिखरते हुए लोग
टूट जाते हैं यही फ़ैसला करते हुए लोग
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Wasi Shah
Rahat Indori
Gulzar
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(583) Peoples Rate This
वो लोग भी तो किनारों पे आ के डूब गए
लहु लहु आँखें
ये रोज़-ओ-शब की मसाफ़त ये आना जाना मिरा
कोई शिकवा न शिकायत न वज़ाहत कोई
इस लहजे से बात नहीं बन पाएगी
फिर आज भूक हमारा शिकार कर लेगी
ख़ुश्क आँखों से कहाँ तय ये मसाफ़त होगी
ये किस की प्यास के छींटे पड़े हैं पानी पर
साथ होने के यक़ीं में भी मिरे साथ हो तुम
सारे ज़ख़्मों को ज़बाँ मिल गई ग़म बोलते हैं