वो लोग भी तो किनारों पे आ के डूब गए
जो कह रहे थे समुंदर हैं सब खंगाले हुए
Wasi Shah
Allama Iqbal
Gulzar
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इस सलीक़े से मुझे क़त्ल किया है उस ने
ये रोज़-ओ-शब की मसाफ़त ये आना जाना मिरा
जौन-एलिया से आख़री मुलाक़ात
ये आरज़ू थी उसे आइना बनाते हम
वो मेरे ख़्वाब की ताबीर तो बताए मुझे
सारे ज़ख़्मों को ज़बाँ मिल गई ग़म बोलते हैं
ज़ेहन पर बोझ रहा, दिल भी परेशान हुआ
ये किस की प्यास के छींटे पड़े हैं पानी पर
सुकूत-ए-शब में
फ़ुरात-ए-इस्मत के साहिलों पर
हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ
मेरे ज़ख़्मों का सबब पूछेगी दुनिया तुम से