ये किस की प्यास के छींटे पड़े हैं पानी पर
ये कौन जब्र का क़िस्सा तमाम कर आया
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कभी न आएँगे जाने वाले
एक तस्वीर जलानी है अभी
अभी बाक़ी है बिछड़ना उस से
मैं चाहता हूँ कभी यूँ भी हो कि मेरी तरह
जौन-एलिया से आख़री मुलाक़ात
नज़र नज़र से मिला कर कलाम कर आया
मिज़ाज अपना मिला ही नहीं ज़माने से
रेआया ज़ुल्म पे जब सर उठाने लगती है
पाँव जब हो गए पत्थर तो सदा दी उस ने
कोई शिकवा न शिकायत न वज़ाहत कोई
इस सलीक़े से मुझे क़त्ल किया है उस ने
देखें कितने चाहने वाले निकलेंगे