अच्छा Poetry (page 5)

इक दामन में फूल भरे हैं इक दामन में आग ही आग

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

शब-ए-फ़िराक़ जो दिल में ख़याल-ए-यार रहा

शेर सिंह नाज़ देहलवी

कसरत-ए-वहदानियत में हुस्न की तनवीर देख

शेर सिंह नाज़ देहलवी

आँखें मिरी तलवों से वो मिल जाए तो अच्छा

ज़ौक़

बे-इंतिहा होना है तो इस ख़ाक के हो जाओ

शहपर रसूल

यार को महरूम-ए-तमाशा किया

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

इधर माइल कहाँ वो मह-जबीं है

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

ज़माना याद रक्खेगा तुम्हें ये काम कर जाना

शायान क़ुरैशी

भागे अच्छी शक्लों वाले इश्क़ है गोया काम बुरा

शौक़ क़िदवाई

वो सनम ख़ूगर-ए-वफ़ा न हुआ

शौक़ देहलवी मक्की

किया जो ए'तिबार उन पर मरीज़-ए-शाम-ए-हिज्राँ ने

शौक़ बहराइची

है शैख़ ओ बरहमन पर ग़ालिब गुमाँ हमारा

शौक़ बहराइची

गुर बुत-ए-कम-सिन दाम बिछाए

शौक़ बहराइची

मेरे महबूब मिरे दिल को जलाया न करो

शौकत परदेसी

मैं किसी दूसरे पहलू से उसे क्यूँ सोचूँ

शारिक़ कैफ़ी

ये कुछ बदलाव सा अच्छा लगा है

शारिक़ कैफ़ी

तन से जब तक साँस का रिश्ता रहेगा

शारिक़ कैफ़ी

कभी ख़ुद को छूकर नहीं देखता हूँ

शारिक़ कैफ़ी

हाथ आता तो नहीं कुछ प तक़ाज़ा कर आएँ

शारिक़ कैफ़ी

बे-तकल्लुफ़ मिरा हैजान बनाता है मुझे

शारिक़ कैफ़ी

ज़मीन तंग है यारब कि आसमान है तंग

शम्स रम्ज़ी

बिछड़ते टूटते रिश्तों को हम ने देखा था

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

दूर तक फैली हुई है तीरगी बातें करो

शमीम रविश

इज़हार-ए-तशक्कुर

शमीम क़ासमी

सब से पहले तो अर्ज़ मतला है

शमीम क़ासमी

किसी ट्रेन के नीचे वो कट गया होता

शमीम क़ासमी

शाम के साहिल पे सूरज का सफ़ीना आ लगा

शमीम हनफ़ी

लक़ड़हारे तुम्हारे खेल अब अच्छे नहीं लगते

शमीम हनफ़ी

शाकी बद-ज़न आज़ुर्दा हैं मुझ से मेरे भाई यार

शमीम अब्बास

झूट सच्चाई का हिस्सा हो गया

शकील जमाली

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