अचानक Poetry (page 2)

एक दिन हम अचानक बड़े हो गए

शारिक़ कैफ़ी

एक मुद्दत हुई घर से निकले हुए

शारिक़ कैफ़ी

मन अरफ़ा नफ़्सहू

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

मंज़र यूँ था

शमीम क़ासमी

वहाँ की रौशनियों ने भी ज़ुल्म ढाए बहुत

शकेब जलाली

नींद आए तो अचानक तिरी आहट सुन लूँ

शहज़ाद अहमद

मुंतज़िर दश्त-ए-दिल-ओ-जाँ है कि आहू आए

शहज़ाद अहमद

चुप के आलम में वो तस्वीर सी सूरत उस की

शहज़ाद अहमद

जागता हूँ मैं एक अकेला दुनिया सोती है

शहरयार

पहले तो मिट्टी का और पानी का अंदाज़ा हुआ

शाहीन अब्बास

मिरे बनने से क्या क्या बन रहा था

शाहीन अब्बास

तलाश

शहाब जाफ़री

मा'दूम होती ख़ुश्बू

शहाब अख़्तर

ख़ुद अपनी आँच से इक शख़्स जल गया मुझ में

शफ़ी ज़ामिन

एक डायलॉग सुब्ह के वक़्त

सय्यद साजिद

कभी होंटों पे ऐसा लम्स अपनी आँख खोले

सरफ़राज़ ज़ाहिद

बुझे चराग़ जलाने में देर लगती है

सरदार सोज़

ख़राब हो गया जब मेरे जिस्म का काग़ज़

संजय मिश्रा शौक़

ये रस्ता

समीना राजा

ज़िंदाँ में आचानक है ये क्या शोर-ए-सलासिल

सालिक लखनवी

बुझ गए शो'ले धुआँ आँखों को पानी दे गया

सलीम शाहिद

नींद से पहले

सलीम अहमद

धुआँ

सलाम मछली शहरी

तेरी आवाज़

साहिर लुधियानवी

हिरास

साहिर लुधियानवी

नज़्म

सईदुद्दीन

अलग अलग इकाइयाँ

सईदुद्दीन

अजब मौजूदगी है जो कमी पर मुश्तमिल है

सईद शरीक़

देख उफ़ुक़ के पीले-पन में दूर वो मंज़र डूब गया

रौनक़ रज़ा

रेत क़ाबिज़ थी बहुत ख़ामोश लगती थी नदी

राशिद अनवर राशिद

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