एक दिन हम अचानक बड़े हो गए
खेल में दौड़ कर उस को छूते हुए
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रुका महफ़िल में इतनी देर तक मैं
ख़मोशी बस ख़मोशी थी इजाज़त अब हुई है
इक दिन ख़ुद को अपने पास बिठाया हम ने
जन्नत से दूर
कुछ क़दम और मुझे जिस्म को ढोना है यहाँ
कम से कम दुनिया से इतना मिरा रिश्ता हो जाए
पहली बार वो ख़त लिक्खा था
तरह तरह से मिरा दिल बढ़ाया जाता है
नींद के वास्ते वैसे भी ज़रूरी है थकन
कौन कहे मा'सूम हमारा बचपन था
लरज़ते काँपते हाथों से बूढ़ा
कुत्ते की मौत