फ़ैसले औरों के करता हूँ
अपनी सज़ा कटती रहती है
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Rahat Indori
Javed Akhtar
Gulzar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(549) Peoples Rate This
ख़मोशी बस ख़मोशी थी इजाज़त अब हुई है
गुफ़्तुगू कर के परेशाँ हूँ कि लहजे में तिरे
किस एहसास-ए-जुर्म की सब करते हैं तवक़्क़ो
नया यूँ है कि अन-देखा है सब कुछ
हाथ आता तो नहीं कुछ प तक़ाज़ा कर आएँ
फ़क़त हिस्से की ख़ातिर
लोग सह लेते थे हँस कर कभी बे-ज़ारी भी
मुमकिन ही न थी ख़ुद से शनासाई यहाँ तक
ये कुछ बदलाव सा अच्छा लगा है
सर्कस में नौकरी का आख़िरी दिन
कुछ क़दम और मुझे जिस्म को ढोना है यहाँ
मैं किसी दूसरे पहलू से उसे क्यूँ सोचूँ