अलम Poetry (page 7)

चादर और चार-दीवारी

फ़हमीदा रियाज़

तौबा की नाज़िशों पे सितम ढा के पी गया

एहसान दानिश

मशवरा

दाऊद ग़ाज़ी

हँसी गुलों में सितारों में रौशनी न मिली

दर्शन सिंह

तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं

दाग़ देहलवी

फिर शब-ए-ग़म ने मुझे शक्ल दिखाई क्यूँकर

दाग़ देहलवी

यूँही जलाए चलो दोस्तो भरम के चराग़

डी. राज कँवल

मर्सिया गोपाल कृष्ण गोखले

चकबस्त ब्रिज नारायण

न कोई दोस्त दुश्मन हो शरीक-ए-दर्द-ओ-ग़म मेरा

चकबस्त ब्रिज नारायण

यही समझा हूँ बस इतनी हुई है आगही मुझ को

ब्रहमा नन्द जलीस

आज़ार-ओ-जफ़ा-ए-पैहम से उल्फ़त में जिन्हें आराम नहीं

बिस्मिल इलाहाबादी

ख़याल को ज़ौ नज़र को ताबिश नफ़स को रख़शंदगी मिलेगी

बिर्ज लाल रअना

लब पे है फ़रियाद अश्कों की रवानी हो चुकी

बहज़ाद लखनवी

ख़ुशी महसूस करता हूँ न ग़म महसूस करता हूँ

बहज़ाद लखनवी

इक बेवफ़ा को दर्द का दरमाँ बना लिया

बहज़ाद लखनवी

ये जो चेहरों पे लिए गर्द-ए-अलम आते हैं

बेदिल हैदरी

मिरी दास्तान-ए-अलम तो सुन कोई ज़लज़ला नहीं आएगा

बेदिल हैदरी

शादी ओ अलम सब से हासिल है सुबुकदोशी

बेदम शाह वारसी

पहले शर्मा के मार डाला

बेदम शाह वारसी

तरहदार कहाँ से लाऊँ

बेबाक भोजपुरी

शौक़ को बे-अदब किया इश्क़ को हौसला दिया

बासित भोपाली

जहन्नम

बाक़र मेहदी

हम ये तो नहीं कहते कि ग़म कह नहीं सकते

ज़फ़र

ख़ुशी महसूस करता हूँ न ग़म महसूस करता हूँ

अज़ीज़ वारसी

कंफ़ेशन

अज़ीज़ क़ैसी

जफ़ा देखनी थी सितम देखना था

अज़ीज़ हैदराबादी

जी रहा हूँ मैं उदासी भरी तस्वीर के साथ

अज़हर नैयर

हम गर्दिश-ए-गिर्दाब-ए-अलम से नहीं डरते

अतहर राज़

जीना है तो जीने का सहारा भी तो होगा

अतहर राज़

दम-ब-दम बढ़ रही है ये कैसी सदा शहर वालो सुनो

अतहर नफ़ीस

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